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नौकरी – सरकारी या प्राइवेट इतना फर्क क्यूँ..?

Deepak's View
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दोस्तों आज हिन्दुस्तान में जो घट रहा है और आने वाले वक़्त में जो घटेगा .. आप में से जो भी उसका अंदाजा लगा सकते हैं वो मेरे इस शीर्षक से बिलकुल सहमत होंगे !
जरा गौर से देखा जाये तो आज सरकार के आकड़ें कहते हैं के ३० – ३२ रूपये कमाने वाला गरीबी रेखा से ऊपर है… क्या सही में केवल ३० – ३२ रूपये से घर चल सकता है..? अरे जो सरकार ये आकड़ें देती है वो ये भूल जाती है के आकड़ें देते वक़्त जब उनका गला सूख जाता है तो जो पानी वो पीते हैं उस एक बोतल की कीमत भी २० रूपये से ज्यादा है… और वही लोग एक आम इन्सान को ३२ रूपये में सभी जरूरी पोषक तत्व युक्त भोजन करा देते हैं.. कैसे?
मैं अपनी बात पर वापस आता हूँ .. जहाँ एक ओर प्राइवेट कम्पनियों में वेतन ४००० से शुरू होता है वहीँ सरकारी नौकरी में १०००० से भी ज्यादा से शुरू होता है.. एक तरफ जहाँ एक व्यक्ति अपनी जिन्दगी के अनमोल साल पढ़ाई में व्यतीत कर एक अच्छे पोस्ट पर एक प्राइवेट नौकरी करता है .. और उसका वेतन लगता है २५ से ३० हजार रूपये पर वहीँ दूसरी ओर एक सरकारी स्कूल में प्राइमरी टीचर का वेतन भी इससे ज्यादा है… आखिर क्यूँ?
हमारे समाज की शिक्षा व्यवस्था का तो कुछ कहना ही नही है उस पर हमारे रोजगारों में व्याप्त ये भेदभाव … सरकारी तंत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार और सरकारी नौकरियों में बढ़ता वेतनमान .. हमारे समाज की सामाजिक परिभाषा को बदल रहा है…
अभी कुछ दिनों पहले भारतीय रेल ने चतुर्थ श्रेणी में नौकरी निकाली … मैं हताश हो गया जब ये देखा के उस श्रेणी की नौकरी के लिए भी जिसमे की कुल रिक्तियां ४० थी १० हजार से ज्यादा आवेदन भारतीय रेल को प्राप्त हुए .. और गौर ए काबिल बात ये है के उनमे जो नवयुवक आवेदन कर रहे थे तक़रीबन २० प्रतिशत एम बी ए थे और इतने ही प्रतिशत इंजिनियर और बी एड़ धारक थे… क्यूँ सरकारी नौकरियाँ हमारे लिए इतनी जरूरी हो गयी हैं… आखिर एक बहुत ज्यादा मेहनत से पढ़े हुए नवयुवक के लिए सरकारी नौकरी सपना क्यूँ है..? क्यूँ वो प्राइवेट नौकरी में नही जाना चाहता ..? जो युवक सरकारी में क्लर्क के लिए आवेदन करके जी जान लगा रहा है उस नौकरी को पाने में .. क्यूँ वो अपनी शिक्षा के अनुरूप प्राइवेट जॉब में एक अच्छी सी जगह नही बना रहा है..?
क्या हमारा सामाजिक ढांचा इस तरह से बिखर रहा है के यहाँ सरकारी नौकरी जीवन में आनंद की प्रतीक बन गयी है जबकि प्राइवेट नौकरी केवल और केवल बस जीवन यापन का साधन ..!!

आज हम आये दिन खबर सुनते रहते हैं के उस क्लर्क के पास इतने करोड़ मिले, उस सरकारी कर्मचारी के पास करोड़ की संपत्ति… कहीं ये ख़बरें ही तो हमारे नवयुवकों को सरकारी नौकरियों की तरफ आकर्षित नहीं कर रही है…? कहीं ये लालच और आराम करने की चाह हमारे समाज को खत्म न कर दें …!
दोस्तों अब मैं इससे ज्यादा क्या कहूँ क्यूंकि मैं खुद भी शायद इस मोह जाल से अछूता नही हूँ … पर हाँ जब मैं खुद से हट के समाज और समाज में व्याप्त इस भेदभाव को देखता हूँ तो दुःख होता है के क्यूँ हमारे सम्मानित नेतागण इस तरफ ध्यान नही दे रहे हैं.. क्यूँ वो इस सरकारी और प्राइवेट नौकरियों की बढती हुई जंग को रोकने का प्रयास नही कर रहे हैं..??
कहीं इसके पीछे भी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार तो नही क्यूंकि ये बात भी सभी जानते हैं के जहां एक ओर प्राइवेट जॉब के लिए शिक्षा ओर मेहनत के अलावा कुछ नही देना पड़ता वहीँ दूसरी ओर सरकारी नौकरी के लिए १ लाख रूपये से लेकर ओर कितने पैसे देते हैं उसका कोई हिसाब ही नही है…
दोस्तों मैं इस मंच से ये आवाज उठाता हूँ के सरकारी ओर प्राइवेट नौकरियों में जो असमानताएं हैं उन्हें दूर किया जाये.. ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी प्राइवेट नौकरियों में भी खुद को सुरक्षित ओर आनंदित महसूस करे..

इसी उम्मीद के साथ….
आपका अपना
दीपक बलिदानी
एंकर / एक्टर
09990745048

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