Menu
blogid : 10775 postid : 70

नारी की बढती ताकत- कहीं विनाश की सूचक तो नही…!!!

Deepak's View
Deepak's View
  • 32 Posts
  • 104 Comments

दोस्तों ,
हो सकता है के मेरे इस लेख से बहुत सारे पाठक-गण सहमत न हो …! और ये भी हो सकता है के इस लेख का विरोध महिला मोर्चा द्वारा किया जाये…! ये भी हो सकता है के मेरी कुछ बहुत ही अच्छी महिला मित्र मुझसे नाराज हो जाएँ..!!!
किन्तु इन सब की चिंता नही है मुझे मैं तो केवल ये सोचने और समझने का प्रयत्न कर रहा हूँ के कहीं जो आज तक हमारे इतिहास में होता आया है वो फिर एक बार होगा ?? मुझे ज्यादा समझ नही है इतिहास की पर जहाँ तक मैंने पढ़ा, देखा और सुना है वहाँ तक एक बात बिलकुल स्पष्ट है के हर एक युग में महिलाओं के कारण हमेशा संघर्ष हुआ है और वो हमेशा विनाश का कारण बनी हैं..!!
हम सभी अच्छे से जानते हैं के हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज है…. हम चाहे कितना भी कह ले के आज लडकियां लड़के बराबर हैं पर हम जानते हैं के अगर ऐसा हुआ तो हमारा बुनियादी ढांचा ही बदल जायेगा..! हम इसे कभी स्वीकार नही कर सकते ..! परन्तु जिस तरह आज के समाज का माहौल बदल रहा है उस तरह तो इस लेख का शीर्षक बिलकुल ठीक होता प्रतीत हो रहा है..!!
अगर एक नजर हमारे देश में होने वाली आत्महत्याओं के आकड़ों पर डालें खास कर जिनकी उम्र १७ से ३० वर्ष है तो उनमे एक बहुत बड़ा आकंडा है उन लडको का जो केवल बेरोजगारी के कारण या फिर अपनी पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्या करते हैं… क्यूंकि उन लडको को वो जगह अब आसानी से नही मिल पा रही है जो उनके बुजुर्गों को मिल गयी थी क्यूंकि उस वक़्त तक हमारे समाज में नारी शक्तिशाली नही थी ..!!
सबसे पहले बेरोजगारी की बात करते हैं तो दोस्तों जिस तरह आज हमारे समाज का माहौल बदल रहा है, ये सर्वविदित है के कुछ पद तो केवल और केवल लड़कियों के लिए ही सीमित कर दिए गये हैं.. मैं खुद इस माहौल का एक गवाह हूँ .. मैं जनता हूँ जब मैंने एंकर करना शुरू किया था उस वक़्त जो काम आता था वो काफी था परन्तु बस दो सालों में इतना बदलाव आया है के आज मेरे पास भी कॉल आती है के कोई महिला एंकर है..?? मेरे कई दोस्त जो बहुत अच्छे एंकर हैं परन्तु फिर भी ख़ास मौकों पर खाली होते हैं जबकि महिला एंकर कोई भी खाली नही रहती उसके पास काम की लाइन होती है… ये है नारी की बढती हुई ताकत… जो कहीं न कहीं पुरुषों में असंतोष और असुरक्षा का भाव बना रही है और यही असुरक्षा एक दिन विनाश का कारण बनेगी…!!
आज आप हर एक क्षेत्र में देख सकते हैं के जो भी रोजगार के अवसर आते हैं उनमे अगर १०० सीट है तो १०० में से सही मायने में केवल और केवल ३० सीट ही लड़कों को मिल पाती हैं और ये एक कारण बनता जा रहा है घरों में कलह का ..!!
पारिवारिक कलह की बात करें तो उसका भी एक बड़ा कारण नारी की बढती हुई ताकत है.. फिल्मों में नाटकों में जो आज देखा जा रहा है उस काल्पनिक जीवन को जीना ही पसंद कर रही हैं हमारे समाज की लडकियां … वो ही खुलापन, आजादी, घूमना फिरना वही सब जो उन चल-चरित्रों में लडकियां करती हैं …. !! एक बहुत बड़ा कारण है पारिवारिक कलह का दोस्तों..आज कल समाचारों और अखबारों में आप आसानी से महिलों द्वारा किये जा रहे समाज के विरुद्ध अनैतिक कार्य पढ़ सकते हैं… जैसे की ये..:
बम्बई के ऊँचे रंग महलो में से एक में इस सपनीली दुनिया के बाशिंदे किसी और दुनिया का टिकेट लेने को जुटते हैं .. अधिक ऊँचे सपनो की दुनिया.. ड्रग्स की दुनिया, “रेव” की दुनिया.. इस में खास बात ये रही की इस नशाखोरो की पार्टी में पुरुष तो खैर जितने भी हों पर ५५ में से उस काली आवारा, बदहोश रात को ३६ लड़कियां भी पुलिस के चंगुल में आयीं.. कोला, फ्रूट ड्रिंक या दारू पीती हुई नहीं ..I लड़कियां, स्त्रियाँ, महिलाएं, बेचारियाँ, नाजुक “देवियाँ” जिन्हें हम शायद ऐसे ही जानते हैं.. इतनी संख्या में लडकियां धुर दारू के नशे में धुत्त, ढेरो अन्य पुरुषो के साथ ऊपर नीचे, मदमस्त सुरूर में डोलते ड्रग्स के अपने नसों में जाने का इंतजार कर रही थीं.. पर ए सी पी विश्वास नगरे पाटिल की ५० लोगो की पुलिसिया टीम ने इन अबला नारियो की निर्मल छवि को तारतार कर दिया.. ऐसा नहीं है की ये लड़कियां गलती से टहलते हुए दस मंजिली ओक्वुड होटल की पूल साइड टेरेस पर रूह आफजा पीने गयी थीं.. या फिर किसी ने इन्हें बरगला कर वहां धोखे से बुला लिया हो, या ये भिन्डी खरीदने जा रही थी और किसी ने चाय पे बुला लिया हो..—— लेखक- शैलेश जी !! नहीं ऐसा नही ये बिलकुल सही है के हमारे समाज की लडकियां भी उन चल चरित्रों को जो के अभिनय के दौरान होते हैं उन्हें जीना चाहती है और उसी जीने की चाह में अपने घर परिवार और समाज के नियमों को तक पर रख देती हैं और इसे नाम दिया जाता है नारी की आजादी या नारी शाश्क्तिकरण …!!
यही सही है और एक दम सही..दोस्तों मुझे बस इतनी है चिंता है के जब जब भी किसी की ताकत बढ़ी है उसे अंहकार हुआ है और समाज का विनाश हुआ है ..! तो कहीं ये नारी की बढती हुई ताकत अगर अपनी मर्यादा और सीमा को लाँघ गयी तो इस समाज का विनाश होना निश्चित है क्यूंकि हम मर्द कितने भी प्यार करने वाले क्यूँ न हो… पर एक सीमा के बाद महिला को आगे नही देख सकते हैं…!!
मुझे नही पता जो बात मैंने कही है उसके क्या अर्थ निकाले जायेंगे पर इतना जनता हूँ के आप सभी के विचार इस लेख को और मुझे एक दिशा दे सकते हैं…
आप सभी अपने विचारों को रखेंगे और हमारे समाज को नयी दिशा मिलेगी इसी उम्मीद के साथ मैं आपका अपना….
दीपक बलिदानी
एंकर / एक्टर
09990745048

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply