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मिटटी में झुलसता बचपन

Deepak's View
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मैं जब भी कभी मजदूरों और उनके बच्चो को देखता हूँ .. बस यही ख्याल मेरे मन में आता है….

छोटे छोटे बच्चे हैं ये , समझो इनकी भाषाएँ ….
छोटे छोटे हैं सपने इनके , हैं छोटी इनकी अभिलाषाएं !
मिटटी और पत्थरों में खेल कर ये बड़े होते हैं …..
हकीकत है के जिन्दगी की भीड़ में ये बच्चे अक्सर खोते हैं !
साथ मिलता है शुरू से ही इन्हें चोर उचको का …..
सोचो क्या होता है भविष्य इन बच्चो का !
गुजरती हुई कार में बैठे हुए उस कुत्ते को देख कर …..
बेचारे बच्चे ये रह जाते हैं अपना मन मसोस कर !
जहाँ कुत्तो को भी मिलते हैं देखो कम्बल आलिशान …
उन्ही घरो के सामने इन बच्चो को मिलता है देखो, ठंडा खुला आसमान !
उन माँ बाप के दर्द की क्या इन्तहा होती होगी ??
जिनके सामने उनकी बच्ची भूखी रोती होगी !
सरकारें आती रहीं, पोलिसी लाती रहीं …
और मंत्री ही उनके उन्हें लूट कर खा गये …
देखते ही रहे माँ बाप आस से लेकिन ….
बच्चे उनके यूँ ही बिलखते हुए भूखे सो गये !!
बच्चे उनके यूँ ही बिलखते हुए भूखे सो गये !!!!!

उम्मीद करता हूँ के किसी दिन जरुर कोई ऐसी सरकार आएगी जो इस भयावह स्थिति से उन परिवारों को मुक्ति दिलाएगी …
इसी आशा के साथ..
आपका अपना
दीपक गुप्ता
एंकर / एक्टर
09990745048

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