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क्या वाकई हम मानव कहलाने योग्य हैं ….

Deepak's View
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भगवान् ने जब मानव का निर्माण किया तो उसे अपनी इस रचना पर बहुत अभिमान हुआ .. उसने मानव में वो सभी खूबियाँ दी जो उसने किसी और प्रजाति को नही दी ! मानव को सबसे बड़ा उपहार मिला – लगाव , संवेदनाएं !!!!
पर क्या आज इस भाग – दौड़ भरी जिन्दगी में जहाँ हर किसी को कुछ करने की , कुछ बनने की जल्दी है , जहाँ किसी के पास किसी के लिए टाइम नही है शायद अपने परिवार के लिए भी नही है … वो अँधा हो चुका है खाने कमाने में .. कुछ करने में , समाज में अपनी एक अलग पोजीशन बनाने में…. संवेदनाएं बची हैं ..???
एक सुबह ठंडा मौसम , प्यारी सी सुहानी सी हवा में मैं अपने घर से बाहर सड़क के किनारे घूमने निकला .. सब कुछ बहुत अच्छा था उस दिन ! और लोग भी वहीँ अपने अपने तरीके से सुबह की ठंडक का आनंद ले रहे थे … बहुत शांति थी चारो तरफ कोई एक या दो वाहन ही गुजर रहे थे सड़क से … तभी एक कानो को भेदती हुई आवाज हुई … ची चीईए चीई …… और इसी आवाज के साथ ही वो सुबह का खुशनुमा माहौल एक दम से बदल गया चारो तरफ से — अरे देखो मार दिया…. अरे मार डाला ले .. अरे मर गया देखियो … पकड़ो साले को .. मारो मारो मारो….. बस यही तो शोर था जो सुनाई दे रहा था …
मैं अचानक हुई इस भगदड़ से सहम गया … मैंने मुडके देखा तो सड़क पर एक जगह बहुत भीड़ हो गयी थी और सभी लोग एक आदमी को बहुत ही बेरहमी से मार रहे थे वो बेचारा हाथ जोड़ रहा था पर कोई कुछ सुनने के लिए तैयार नही था ….बस उसे पागलो की तरह मारे जा रहे थे.. तभी मैंने देखा के वहाँ एक आदमी और है जो सड़क पर खून में लथपथ पड़ा है .. वो बेहोश हो गया था उसके सर से खून बह रहा था … कुछ लोग पोलिस को कॉल करने की बात कह रहे थे तो कुछ उसे हॉस्पिटल ले जाने की बात कर रहे थे और बाकि तो उस ड्राईवर को मारने में व्यस्त थे …. तभी किसी ने उस ड्राईवर के सर पर कुछ मार दिया और उसके सर से भी खून निकलने लगा.. वो भी दर्द से बुरी तरह चिल्ला रहा था पर कोई सुनने वाला नही था वहाँ ….!!
बस सब आपस में बातें ही कर रहे थे पर उन दोनों लोगो को कोई भी हॉस्पिटल नही ले जा रहा था..तभी किसी ने कहा अरे इसे लेकर हॉस्पिटल चलो .. दूसरा बोला पोलिस के चक्कर में कौन पड़ेगा … अभी आ जाएगी पोलिस ले जाएगी खुद से .. भैया ये पोलिस का चक्कर बहुत बुरा है , कब हुआ ? कैसे हुआ ? तुमने क्या देखा ? कौन पड़ेगा पचड़े में ,….. और भाई अगर ले जाते वक़्त ये कहीं ये मर गया तो अपनी भी जमानत नही होगी .. न भाई न मैं चला ऑफिस के लिए लेट हो रहा है.. और एक एक करके धीरे धीरे लोग निकलने लगे वहां से ….. इतना होते होते दिन चढ़ गया और सड़क पर ट्राफिक भी निकल आया .. स्कूल जाने वाले बच्चे .. नौकरी पर जाने वाले लोग सभी उस तरफ देख रहे थे और मन में बुदबुदाते हुए चले जा रहे थे अपने अपने कामो पर… और अभी तक वो दोनों लोग खून में लथपथ कुछ लोगो से घिरे हुए सड़क पर पड़े हुए थे … तभी पोलिस की गाड़ी आई .. और दोनों को उठा के नजदीक के किसी हॉस्पिटल ले गयी ….और एक सवाल छोड़ गयी ….
क्या वाकई में हम मानवों में संवेदनाएं शेष हैं …?? क्या आज भगवान् हम लोगो को देख कर खुश होता होगा .,,?? क्या उसे आज भी अपनी इस रचना (मानवों ) पर गर्व होता होगा …??
मैं उस दिन से आज तक बस यही सवाल लिए हुए अपने दिल को समझा रहा हूँ के शायद फिर किसी दिन हम लोगो की खोई हुई संवेदनाएं वापस आएँगी …!!!!!!
आपका अपना
दीपक गुप्ता
एंकर / एक्टर
09990745048

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